Skip to main content

निमित्तज्ञ द्वारा स्वप्नफल - कथन | Lord Parasnath philosophy turning point via Lord Mahaveer

 उस गाँव में उत्पल नामक एक निमित्तज्ञ रहता था । वह पहले पार्श्वनाथ की परम्परा का श्रमण था, किन्तु किसी कारण से वह श्रमण-जीवन छोड़ चुका था । उसने जब भगवान महावीर के यक्षायतन में ठहरने की बात सुनी तो अनिष्ट की आशंका से उसका हृदय हिल उठा । प्रात:काल वह पुजारी के साथ यक्षायतन पहुँचा। वहाँ पर उसने भगवान को ध्यानावस्थ खड़े देखा तो बड़ा प्रसन्न हुआ। रात के स्वप्नों के फल के सम्बन्ध में उसने प्रभु से निम्न विचार व्यक्त किये:-


1. पिशाच को मारने का अर्थ है कि आप मोहकर्म का अन्त करेंगे।


2. श्वेत कोकिल देखने का तात्पर्य यह है कि आपको शुक्लध्यान प्राप्त होगा ।


3. विचित्र रंग के कोकिल देखने का तात्पर्य यह है कि आप विविध ज्ञानों से पूर्ण श्रुत की देशना करेंगे।


4. देदीप्यमान दो रत्नमालाओं का तात्पर्य निमित्तज्ञ नहीं बता सका।


5. सफेद गौवर्ग का तात्पर्य यह है कि आप चतुर्विधसंघ की स्थापना करेंगे।


6. विकसित पद्म सरोवर का तात्पर्य है कि चार प्रकार के देव आपकी सेवा करेंगे।


7. समुद्र को तैर कर पार करने का तात्पर्य है कि आप संसार- सागर को पार करेंगे।


8. उदीयमान सूर्य से विश्व में आलोक का तात्पर्य है कि आप केवलज्ञान प्राप्त कर दूसरों को प्रतिबोध देंगे।


9. आँतों से मानुषोत्तर पर्वत वेष्ठित करने का तात्पर्य यह है कि आपकी कीर्ति सारे मनुष्य लोक में फैलेगी।


10. मेरु पर्वत पर चढ़ने का तात्पर्य यह है कि आप सिंहासनारूढ़ होकर धर्मोपदेश देंगे।


दो रत्नमालाओं का तात्पर्य स्वयं भगवान ने बताया दो प्रकार के धर्म अर्थात् साधुधर्म और श्रावकधर्म की

देशना करेंगे। इस प्रकार स्वप्नों का तात्पर्य जानकर सभी लोग प्रसन्न हुए। अस्थिग्राम के वर्षावास में भगवान को इसके बाद कोई उपसर्ग नहीं आया। उन्होंने शांतिपूर्वक पन्द्रह-पन्द्रह दिन के 8 उपवास किये और प्रथम वर्षावास सम्पन्न किया।

Comments

Popular posts from this blog

A Moral Duty towards our Parents/Parents in Law | Duty | माता-पिता के लिए कर्तव्य

A very well explained article for the Moral Duty towards our parents   || अपने माता-पिता के प्रति नैतिक कर्तव्य के बारे में बहुत अच्छी तरह से समझाया गया लेख ये क्या कर रही हो निशा तुम.....अपनी पत्नी निशा को कमरे में एक और चारपाई बिछाते देख मोहन ने टोकते हुए कहा ... निशा -मां के लिए बिस्तर लगा रही हूं आज से मां हमारे पास सोएगी.... मोहन-क्या ..... तुम पागल हो गई हो क्या ... यहां हमारे कमरे में ...और हमारी प्राइवेसी का क्या  ... और जब अलग से कमरा है उनके लिए तो इसकी क्या  जरूरत... निशा-जरूरत है मोहन .....जब से बाबूजी का निधन हुआ है तबसे मां का स्वास्थ्य ठीक नहीं रहता तुमने तो स्वयं देखा है पहले बाबूजी थे तो अलग कमरे में दोनों को एकदूसरे का सहारा था मगर अब ....मोहन बाबूजी के बाद मां बहुत अकेली हो गई है दिन में तो मैं आराध्या और आप उनका ख्याल रखने की भरपूर कोशिश करते है ताकि उनका मन लगा रहे वो अकेलापन महसूस ना करे मगर रात को अलग कमरे में अकेले ....नहीं वो अबसे यही सोएगी... मोहन-मगर अचानक ये सब ...कुछ समझ नहीं  पा रहा तुम्हारी बातों को...। निशा-मोहन हर बच्चे का ध्यान उसके माता पिता बचपन में

मध्यमपावा में समवशरण—2 | Lord Mahavier Samavsaran in Madhyam Pava

मध्यमपावा में समवशरण—2  | Lord Mahavier Samavsaran in Madhyam Pava    जृंभिका ग्राम से भगवान 'मध्यमपावा' पधारे। वहाँ पर आर्य सोमिल एक विराट यज्ञ का आयोजन कर रहे थे जिसमें उच्चकोटि के अनेक विद्वान् निमंत्रित थे। उधर भगवान के पधारने पर देवों ने अशोक वृक्ष आदि महाप्रतिहार्यों से प्रभु की महान् महिमा की और एक विराट समवशरण की रचना की। वहाँ देव-दानव और मानवों की विशाल सभा में भगवान उच्च सिंहासन पर विराजमान हुए और मेघ-गंभीर वाणी में उन्होंने अर्धमागधी भाषा में अपनी देशना आरम्भ की। समवशरण में आकाश मार्ग से देव-देवी आने लगे। यज्ञ-स्थल के पंडितों ने सोचा वे देव यज्ञ के लिए आ रहे हैं, पर जब वे आगे बढ़ गए तो उन्हें आश्चर्य हुआ । पण्डित इन्द्रभूति को जब मालूम हुआ कि देवगण प्रभु महावीर के समवशरण में जा रहे हैं तो वे भी भगवानमहावीर के ज्ञान की परख और उन्हें शास्त्रार्थ में पराजित करने के उद्देश्य से अपने पाँच सौ छात्रों और अन्य विद्वानों के साथ वहाँ पहुँचे। समवशरण में प्रभु महावीर के तेजस्वी मुखमण्डल और महाप्रतिहार्यों को देखकर इन्द्रभूति बहुत प्रभावित हुए और प्रभु महावीर ने जब उन्हें 'इन

Lesson To Avoid hatred, Lord Mahavir Speech Towards Society!!!

Lesson To Avoid hatred, Lord Mahavir Speech Towards Society!!!  किसी से इतनी नफरत भी मत करो कि उसकी अच्छी बात भी बुरी लगे  किसी से इतना प्यार मत करो कि उसकी बुरी बात भी अच्छी लगे।  किसी की अच्छी बात को स्वीकार करो और उसकी बुरी बातों को इग्नोर करो । बुरी बात को देखकर आदमी को बुरा मत मानो । अगर बुरे को बुरा ही कहते रहोगे तो उसकी अच्छाई भी बुराई में बदल सकती है ।  इसलिए कहते हैं कि पाप से घृणा करो पापी से नहीं ।  पुराने जमाने में घर में सीधा आटा न आकर गेहुं आते थे । घर की महिलाएं ही उस गेहूं को थाली में लेकर ध्यानपूर्वक देखकर उसमें से कंकर,तिनके, और जीव जंतु अलग करती थी और गेहूं को अलग करती थी । फिर उन गेहुओं को घर में पत्थर की चक्की में स्वयं पीसती थी । फिर उस आटे से रोटी भी स्वयं पकाती थी, क्योंकि वो रोटी उसके पति और बच्चे खाने वाले हैं । वे सब उसके अपने है ।इसलिए उनके पेट में ऐसी कोई वस्तु न जावे जो उसके आंखों से अनदेखी हो । इसलिए पुराने जमाने में लोगों का तन मन दोनों स्वस्थ रहता था ।  आज किसके घर में गेहूं आते हैं?  आते हैं क्या ?  जन आवाज- नहीं ।  सीधा आटा आता है ।  अब जरा सोचिए वो आ